Everything about maha kali kavach

करूण पुकार सुनी भक्तन की । पीर मिटावन हित जन-जन की ॥

ॐ हं आकाशतत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमहाविद्याप्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः ।

प्रोञ्छनैर्वामपादेन दरिद्रो भवति ध्रुवम् ।।

रूप भयंकर जब तुम धारा । दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥

ऊध्र्व पातु लोलजिह्वा मायाद्या पात्वध: सदा।

शतवर्ष सहस्त्राणाम पूजायाः फलमाप्नुयात् ॥

ह्रीं कालिकायै स्वाहा मम पष्ठं सदावतु।

क्रींनाभिं मध्यदेशं च दक्षिणे कालिकेऽवतु ।

हे नारायणा ! मी आपल्या तोंडून भद्रकाली-कवच तसेच दशाक्षरी विद्या ऐकू इच्छितो. 

तब मुख जीभ निकर जो आई । यही रूप प्रचलित है माई ॥

कलि के कष्ट कलेशन हरनी । maha kali kavach भव भय मोचन मंगल करनी ॥

शत्रूरूच्चाटनं याति देशाद वा विच्यतो भवेत् ।

क्लीं कपालं सदा पातु ह्रीं ह्रीं ह्रीं इति लोचने ।

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